मैं ख़ाली सा कागज़ था कोई…
वो मिली मुझे किसी नज़्म की तरह

ख़ामोशी बहुत कुछ कहती हे ,
कान लगाकर नहीं ,
दिल लगाकर सुनो !!

दूर बैठ रहोगे, पास न आओगे कभी
ऐसे रूठोगे तो जान ले जाओगे कभी

उंगलिया आज भी इस सोच में गुम है
उसने कैसे नए हाथ को थामा होगा...

बेवफ़ाओं की महफ़िल लगेगी आज....!!
ज़रा वक़्त पर आना " मेहमान-ए-ख़ास" हो तुम.....!!

आख़िर तुम भी उस आइने की तरह ही निकले...जो भी सामने आया तुम उसी के हो गए.!!

वो मुखातिब है कहीं और कायल,।

या तो सबर रख, या अपनी अहमियत बढ़ा ....।।

तुम याद भी आते हो तो चुप रहते हैं, ....!!
के आँखो को खबर हुई तो बरस जाएंगी !!

लबों से लब मिल गए लबों से लब सिल गए ,,
सवाल गुम, जवाब गुम, बडी हसीन रात थी .. .

रोज़ रोज़ गिर कर मुकम्मल खड़ी हूँ,
ज़िन्दगी देख,मैं तुझसे कितनी बड़ी हूँ..

उसकी निगाहों में इतना असर था
खरीद ली उसने एक नज़र में ज़िन्दगी मेरी…

हमने गुज़रे हुए लम्हों का हवाला जो दिया
हँस के वो कहने लगे रात गई बात गई ...!!!

बस एक बार निकाल दो इस इश्क से ऐ खुदा ,

फिर जब तक जियेंगे कोई खता न करेंगे ...

मिले जब चार कंधे तो दिल ने ये कहा मुझसे...
जीते जी मिला होता तो.....एक ही काफी था !!

हम जिंदगी की भागदौड़ मे इतने लीन हो गए पता ही नहीं चला गोलगप्पे कब 10 के तीन हो गए...