और भी बनती लकीरें दर्द की
शुक्र है खुदा तेरा जो हाथ छोटे दिए
और भी बनती लकीरें दर्द की
शुक्र है खुदा तेरा जो हाथ छोटे दिए
दो लफ्ज लिखे जो तेरी याद मेँ
सब कहने लगे तू आशिक बहुत पुराना
जी में आता है तेरे दामन में सर छुपा के
हम रोते रहें रोते रहें
कब तक भूगतूँ मै अब सज़ा तेरी
एइश्क गलती हो गई बस माफ़ कर अब मुझे
अब शिकवा क्या करना उनकी बेरुखी का...
अब दिल ही तो था भर गया होगा.
आज कोई नया जख्म नहीं दिया उसने मुझे
कोई पता करो वो ठीक तो है ना.
एक तो ये गर्मी और एक तुम
दोनो बहनें हो क्या जो इतना सताती हो हमे
तुझसे से कैसे गिला ऐ नादान
कुछ रिश्तों की उम्र ही कम होती है
Er kasz
तड़प उठता हूँ दर्द के मारे
ज़ख्मों को जब तेरे शहर की हवा लगती है
एक चाहत थी तेरे संग जिने की
वरना मौहब्बत तो किसी से भी हो सकती थी
इश्क़ तो बस नाम दिया है दुनिया ने
एहसास बयां कोई कर पाये तो बात हो
रोशनी में कमी आ जाए तोह बता देना
दिल आज भी हाज़िर हैं जलने के लिये
राह-ऐ-वफ़ा में हमको खुशी की तलाश थी
दो कदम ही चले थे के हर कदम रो पड़े
कहाँ से लाएं हर रोज़ एक नया दिल
तोड़ने वालों ने तो तमाशा बना रखा है.!!!
एक आंसूं कह गया सब हाल दिल का
मैं समजा था ये ज़ालिम बे ज़बान है
er kasz