लाश पता नही किस बदकिस्मत की थी मगर
क़ातिल के पैरो के निशान बड़े हसीन थे

अब इतना भी सादगी का जमाना नही रहा
की तुम वक़्त गुजारो और हम प्यार समझें

ऐसा नहीं है हमको बातें बुरी नहीं लगती
एक बस तेरे लिए सारे गुनाह माफ हैं

पलकों को अब झपकने की आदत नहीं रही
जाने क्या हुआ है तुम्हें देखने के बाद

जितनी भीड़ बड़ती जा रही है ज़माने में
लोग उतने ही अकेले होते जा रहे हैं

हाथ की लकीरें भी कितनी अजीब हैं
हाथ के अन्दर हैं पर काबू से बाहर होती है

बदन समेट के ले जाए जैसे शाम की धूप
तुम्हारे शहर से मैं इस तरह गुजरता हूँ

किसी की यादों में नही लिखता हूँ
हाँ लिखता हूँ तो किसी की याद जरूर आती है

आईने से ले नहीं सकता कोई भी इन्तेक़ाम
एक टूटेगा हज़ारों को जनम दे जायेगा

सुना है आग लग गयी है बेवफाओ की बस्ती में
या खुदा मेरे मेहबूब की खैर रखना

शाख से तोड़े गये फुल ने हंसकर कहा
अच्छा होना भी बुरी बात है इस दुनिया में

वो मुझे नहीं चाहता तो क्या हुआ
क्या इतनी सी बात पर मैं उसे चाहना छौङ दूँ

सब कुछ पा लिया मैंने या पा लूँगा
पर वो तेरे मेंहदी लगे हाथ मेरे ना हो सके

दफ़न हे मुझमे मेरी कितनी रौनके मत पूछो
उजड़ उजड़ कर जो बसता रहा वो शहर हु मे

कल निकले थे हवा में कुछ लोग मुझे गिराने
पर भूल गए थे वो हम जमीन पर चलते है