जितना आज़मा सकते हो आज़माओ सब्र मेरा
हम भी देखें हम टूट कर कब तलक बिखरते हैं
er kasz

मयखाने से पूछा आज इतना सन्नाटा क्यों है
बोला साहब लहू का दौर है शराब कौन पीता है

छेड़कर जमानेभर की लड़कियों को रोया वो रातभर
जिस रोज घर उसके बिटिया ने जन्म लिया

मिलने को यूँ तो हमसे मिले है हजारो
वो शख्स जो सीधा दिल में उतर गया उसका हुनर कमाल था

इक आग का दरिया हैं मोजों की रवानी हैं
ज़िंदगी और कुछ भी नहीं.. तेरी मेरी कहानी हैं
er kasz

यह भी अच्छा है की हम किसी को अच्छे नहीं लगते
चलो कोई रोयेगा तो नहीं हमारे मरने के बाद...

मदहोश होता हूँ तो दुनियाँ को बुरा लगता हूँ
होश रहता है तो दुनियाँ मुझको बुरी लगती है

आमतौर पे एक सुंदर कन्या को देख कर बूढ़े
भूतकाल में चले जाते हैं और नौजवान भविष्यकाल में

इंसान को इंसान धोखा नहीं देता
बल्कि इंसान को उसकी उम्मीदें धोखा देती है जो वो दूसरों से रखता है