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गुलाम हूँ अपने घर के संस्कारो
गुलाम हूँ अपने घर के संस्कारो
गुलाम हूँ अपने घर के संस्कारो का वरना
लोगो को उनकी औकात दिखाने का हुनर आज भी रखता हूँ
er kasz
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भीड़ में खड़ा होना मकसद नही
ठोकरें खा कर भी ना संभले
सोने के जेवर ओर हमारे तेवरलोगो
मोहब्बत का असर मैं कुछ इस
में बंदूक और गिटार दोनों चलाना
ज़िन्दगी अपने हिसाब से जीनी चहियेऔरो
अक्सर वही लोग उठाते हैं हम
सूनो हम तो गरीब ही थे
बादशाह बनके हुकुमत करने का शौक
क्या खूब हुनर है तेरा मेरे
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