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Two Lines
Dard Shayari
तुम हक़ीक़तएइश्क़ हों या फ़रेब मेरी
तुम हक़ीक़तएइश्क़ हों या फ़रेब मेरी
तुम हक़ीक़त-ए-इश्क़ हों या फ़रेब मेरी आँखों का,
न दिल से निकलते हो न मेरी ज़िन्दगी में आते हो
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शायद कोई ख्वाहिश रोती रहती है
बरबाद कर देती है मोहब्बत हर
जिस जिस को मिली खबर सबने
इश्क का बटवारा रज़ामंदी से हुआचमक
नहीं शिकवा मुझे कुछ तेरी बेवफाई
फिर मोहब्बत करनी है मुझसे तो
तेरी यादों के नशे का आदि
तेरी मुहब्बत भी किराये के घर
उसका वादा भी अजीब था कि
लोग पूछते है इतनी शायरी कैसे
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