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Dard Shayari
रात को कहो जरा धीरे धीरे
रात को कहो जरा धीरे धीरे
रात को कहो जरा धीरे धीरे गुजरे
काफी मिन्नतों के बाद दर्द सो रहा है
Ek Musafi
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उदास दिल है मगर मिलता हूँ
ए खुदा तू इश्क़ न करना
बहुत है मेरे मरने पर रोने
पागल नहीं थे हम जो तेरी
मुझे तेरी खूबियाँ और खामियाँ सब
हमने भी चाह था कभी एक
मुस्कान भरे चेहरे के पीछे कितनी
क्या लिखूँ दिल की हकीकत आरज़ू
उसका वादा भी अजीब था कि
एक ज़ख्म ही नही यहाँ तो
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