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Dil Shayari
प्रेम के बाग लगाकर तुम ये
प्रेम के बाग लगाकर तुम ये
प्रेम के बाग लगाकर तुम ये कैसे फूल खिलाती हो
पुण्य की नाव डूबकर तुम क्यों पाप की नाव चलती हो
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