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Kashish Shayari
गुलाम हूँ अपने घर के संस्कारो
गुलाम हूँ अपने घर के संस्कारो
गुलाम हूँ अपने घर के संस्कारो का वरना
लोगो को उनकी औकात दिखाने का हुनर आज भी रखता हूँ
er kasz
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ठोकरें खाकर भी ना संभले तो
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Chaale Jayenge Ek Din Hum Tujhe
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