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Kashish Shayari
ठोकरें खाकर भी ना संभले तो
ठोकरें खाकर भी ना संभले तो
ठोकरें खाकर भी ना संभले तो मुसाफिर का नसीब
राह के पत्थर तो अपना फ़र्ज़ अदा करते हैं
er kasz
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