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Two Lines
Kashish Shayari
वो ढल रहा है तो ये
वो ढल रहा है तो ये
वो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही है
ज़मीन सूरज की उँगलियों से फिसल रही है
er kasz
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आजकल उसने नया एक मुर्गा फसाया
duniya khamosh hui padhi hai uss
बख्शे हम भी न गए बख्शे
मुझे अपने किरदार पे इतना तो
लिखता हूं पत्र खून से स्याही
वो लाख तुझे पूजती होगी तू
जिस नजाकत से ये लहरे मेरे
सब तेरी मोहब्बत की इनायत है
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