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Taarif Shayari
लफ़्ज़ अल्फ़ाज़ कागज़ और किताबकहाँ कहाँ
लफ़्ज़ अल्फ़ाज़ कागज़ और किताबकहाँ कहाँ
लफ़्ज़ अल्फ़ाज़ कागज़ और किताब
कहाँ कहाँ नहीं रखता तेरी यादों का हिसाब
er kasz
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कहना ही पड़ा उसे शायरी पढ़
नजर है बदली बदली सी अदा
बेसबब नही था मुस्कराना उसकामगर हँसती
तुम्हे तकलीफ न हो जरा भी
कभी इतना मत मुस्कुराना की नजर
Badi hi shiddat se intzaar hai
यूँ ही शौक़ है हमारा तो
कोई और गुनाह करवा दे मुझ
वो कहती है की में उसकी
फैसले से पहेले कैसे मान लूं
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