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Zindagi Shayari
गुलाम हूँ अपने घर के संस्कारो
गुलाम हूँ अपने घर के संस्कारो
गुलाम हूँ अपने घर के संस्कारो का वरना
लोगो को उनकी औकात दिखाने का हुनर आज भी रखता हूँ
er kasz
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Ek khwaish hai khuda se ke
हर रात जान बूझकर रखता हूँ
तवायफ फिर भी अच्छी के वो
हम ना रहें कल तो हमारी
पॉव सूखे हुए पत्तों पे अदब
माना कि बहुत कीमती हूँ मैं
ज़र्रा ज़र्रा जल जाने को हाज़िर
दुश्मन भी दुआ देते हैं मेरी
कहना ही पड़ा उसे शायरी पढ़
मछलियाँ यह सुनकर बहुत ही खुश
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