तेरा नाम लिखने की इजाज़त छिन गई जब से
कोई भी लफ्ज लिखता हूँ तो आँखें भीग जाती है

शायरी करना भी तो एक नेकी का काम है
कितने बिछड़े हुए लफ़्जो को मिला देता हूँ
Er kasz

खिड़की के बाहर का मौसम बादल बारिश और हवा
खिड़की के अन्दर का मौसम आँसू आहें और दुआ

चमन में फूल खिलते हैं तो खुशबू आ ही जाती है
हसीना जब याद आयेगी तो रुलाई आ ही जाती है

दम तोड़ देती है माँ-बाप की ममता जब बच्चे कहते है
तुमने किया ही क्या है हमारे लिए
Er kasz

जिसे भी देखा उसे रोता हुए ही पाया..
मुझे तो ये मोहब्बत किसी फ़क़ीर की बद्दुआ लगती है !!

बड़ी शिद्द्त से राजी हुए है वो साथ चलने को ...
खुदा करे के मुझे सारी जिंदगी मंजिल न मिले....

लफ्ज होते हैं इंसान का आईना शक्ल का क्या
वो तो उम्र और हालात के साथ अक्सर बदल जाती है

कल घर से निकले थे, माँ के हाथो के बने पराठे खा कर...
आज सड़क किनारे चाय तलाश रही है जिंदगी...!! Er kasz

वो एक मौका तो दे हमे बात करने का.
वादा है
उन्हें भी रुला देंगे उन्ही के सितम सुना -सुना कर...

फ़रिश्ते ही होंगे जिनका हुआ इश्क मुकम्मल,
इंसानों को तो हमने सिर्फ बर्बाद होते देखा है….!

प्यार मोहब्बत आशिकी..
ये बस अल्फाज थे..
मगर.. जब तुम मिले..
तब इन अल्फाजो को मायने मिले !!
•• Er kasz

तुझसे मोहबत के लिए तेरी मौजूदगी की जरूरत नही,
ज़र्रे ज़र्रे में तेरी रूह का अहसास होता है...Er kasz

सजा बन जाती है गुज़रे हुए वक्त की यादें,
न जाने क्यों छोड़ जाने के लिए जिंदगी में आ जाते हैं लोग..!!

हम गरीब लोग है किसी को मोहब्बत के सिवा क्या देंगे.
एक मुस्कराहट थी, वह भी बेवफ़ा लोगो ने छीन ली.,