भुला दूंगा तुझे थोड़ा सबर रखना
रग-रग में बसी है थोड़ा वक़्त तो लगेगा
भुला दूंगा तुझे थोड़ा सबर रखना
रग-रग में बसी है थोड़ा वक़्त तो लगेगा
किसी को मेरे बारे में पता कुछ भी नही
इल्जाम हजारो है और खता कुछ भी नही
मैं तुझे सोचकर इतना लिख देता हूँ
और एक तु हैं कि याद भी नहीं करती मुझे
पत्तों सी होती है कुछ रिश्तों की उम्र भी
आज हरे हैं और कल सूख जाते हैं
इज़हारे मुहब्बत पे अजब हाल है उनका,
आँखें तो रज़ामंद हैं, लब सोच रहे हैं
ये तेरी मेरी ही नहीं इस जहाँ में समझ ले
ईश्क की दास्तां हर एक अधूरी है
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से खफा है तो ज़माने के लिये आ
कुसूर नही इसमे कुछ भी उनका
हमारी चाहत ही इतनी थी के उन्हे गुरुर आ गया.
सजा देनी हम को भी आती है ओ बेखबर
पर तू तकलीफ़ से गुजरे ये हमें गवारा नही
ऐ जिंदगी हमे तुझसे तमन्ना कब है
अब तो इस हाल पे जीते हैं के मारना कब है
मुझे सिर्फ तू पसंद है, ना कोई और.! ना कोई और तेरे जैसा, ना कोई और तेरे अलावा.!
दिल तो करता है चिर के रख दू ऐ दिल तुझे
ना तू रहे मुझ में ना वो रहे तुझ में
जो तड़प तुझे किसी आईने में न मिल सके..
तो फिर आईने के जवाब में मुझे देखना.!
मेरे अपने कहीं कम न हो जाएँ
इस डरसे मुसीबत में किसी को आजमाता नहीं
Er kasz
चीजें बदलती है और दोस्त चले जाते हैं
ज़िन्दगी किसी के लिए रूकती नहीं