काश मै लौट पाऊँ बचपन कि उन गलियों में
जन्हा ना कोई ज़रूरी था ना कोई जरूरत
काश मै लौट पाऊँ बचपन कि उन गलियों में
जन्हा ना कोई ज़रूरी था ना कोई जरूरत
हम जा रहे हैं वहाँ जहाँ दिल की हो कदर
तुम बैठे रहना अपनी अदायेँ सम्भाल कर
सस्ता न समझ ये इश्क़ का सौदा पगली
तेरी हँसी के बदले पूरी जिंदगी दे रहा हूँ
ज़ख़्मों के बावजूद मेरा हौसला तो देख
तू हँसी तो मैं भी तेरे साथ हँस दिया
मुददतों से तू पी रहा है यह ज़हर दर्द का
मौत तुझे ऐ दिल फिरभी क्योँ नहीं आती
लगाकर आग़ सीने में कहाँ चले हो तुम हमदम
अभी तो राख़ उडने दो तमाशा और भी होगा
कभी टूट कर बिखरो तो मेरे पास आ जाना,
मुझे अपने जैसे लोग बहुत अच्छे लगते है.
मैंने जान बचा के रखी है एक जान के लिए
इतना इश्क कैसे हो गया एक अनजान के लिए
मत पूँछ मेरे जागने की वजह
ऐ-चाँद तेरा ही हम शकल है वो जो मुझे सोने नही देता
बड़ा खुश है आज मेरे बिना भी वो
जो दूर जाने के ज़िकर पे होंठो पे हाथ रख देता था
ये नज़रें तो किसी को देखना ही नहीं चाहती ,
तो दिल में कैसे बसाएंगी किसी को ,
तुम्हारी शर्तो से शहेनशाह बनने से बहेतेर है
की अपनी शर्तो पे फ़क़ीर बन जाऊ
बगैर जिसके एक पल भी गुजारा नहीं होता
सितम देखिए वही शख्स हमारा नहीं होता
हमनेँ पूछाँ कैसे निकलती है जान एक पल मे
उसने चलते चलतें मेरा हाथ छोड दिया
तरस गए हैं तेरे लब से कुछ सुनने को हम.
प्यार की बात न सही कोई शिकायत ही कर दे..