बेकार है शायरी दर्द के बिना
दर्द ही रंग भरता है गजल में
बेकार है शायरी दर्द के बिना
दर्द ही रंग भरता है गजल में
गलतफहमी में जिंदगी गुजार दी
कभी हम नहीं समझे कभी तुम नहीं समझे
दिल सुलगता है तो धुआं क्यों नहीं उठता
क्यों वो आग अक्सर आसुओं में बह जाती है
पता नहीं क्या रिश्ता था टहनी से उस पंछी का
उसके उड़ जाने पर वो कितनी देर कांपती रही
अपना वजूद मत बताओ हमें साहिब
हम झाँक कर दिलों की गहराई जान लेते हैं
Er kasz
अंदर कोई झांके तो टुकड़ो में मिलूंगा मैं
यह हँसता हुआ चेहरा तो ज़माने के लिए है
ये जो तुम्हारा पलट के देखना और
फिर अचानक से नजरे घुमा लेना भी हिट एंड रन का ही केस है
🌹राख में भी नहीं जीने देते
चैन से लोग.......
दो दिन बाद आकर
वहाँ से भी आधा ले जाते है.।🌹
तजुर्बे ने एक बात सिखाई है
एक नया दर्द ही पुराने दर्द की दवाई है
Us Ki Jeet Se Hoti Hai Khushi Mujh Ko
Yahi Jawab Mare Paas Apni Haar Ka Tha
Aagaz e Ishq bhi Khub tha Ghalib kya kahun
Pehle to thi dil lagi phr dil ko ja lagi
Meri subha udas hai aur sham meri tanha si
Kya kasoor tha mera sirf tujhse mohbbat ke siwa
अपने उसूल कभी यूँ भी तोड़ने पड़े खता उसकी थी
हाथ मुझे जोड़ने पड़े
अजीब मजाक करती हैं यह नौकरी काम मजदूरों वाले कराती हैं
और लोग साहब कहकर बुलाते हैं
Er kasz