मुझे मालुम हे वह किसी और कि हो गई है
इस दिल का क्या करे जो उस वेवफा पे मरता है

मत पूछो मेरा कारोबार क्या है
मोहब्बत की दुकान है और चलता नफरत का बाजार हैं

हर रात जान बूझकर रखता हूँ दरवाज़ा खुला...
शायद कोई लुटेरा मेरा गम भी लूट ले.... Er kasz

टूट जाते हैं अक्सर वफा के वो वादे
जिनके पीछे नहीं होते निभाने के पक्के इरादे

हवा से कह दो कि खुद को आजमा के दिखाये बहुत
चिराग बुझाती है एक जला के दिखाये
Er kasz

जब तुम ही नहीं हो तो ज़माने से मुझे क्या
ठहरे हुए जज़्बात में जाँ है भी नहीं भी

फ़ासले तो बढ़ा रहे हो मगर इतना याद रखना
मुहब्बत बार बार इंसान पर मेहरबान नहीं होती

मुस्कुरा देता हूँ अक्सर देखकर पुराने खत तेरे,
तू झूठ भी कितनी सच्चाई से लिखती थी...!

हजारों चेहरों में एक तुम ही पर मर मिटे थे..
वरना..
ना चाहतों की कमी थी और ना चाहने वालों की..!

ना जाने क्यों मगरूर हैं इस झुठी दुनिया के झूठे लोग,
वफ़ाएं कर नहीं सकते वादे हज़ार करते हैं .

तेरे बिना मैं ये दुनिया छोड तो दूं पर उस माँ दिल कैसे दुखा दुं
जो रोज दरवाजे पर खडी कहती है “बेटा घर जल्दी आ जाना “

MuhaBat Ho Chuki Poori
Chalo Ab Zakham Ginte Hain

Tanhayi Ke Aatishdaan Me Main Lakri Ki Tarah Jalta Tha
Tere Saath Tere Hamraahi Mere Saath Mera Rasta Tha

जिंदगी से कोई दुश्मनी नही मेरी
एक ज़िद है की बस तेरे बिना नही जीना

भूल जाना तुम मुझे पर ये याद रखना 
तेरी रूह रोयेगी जब कोई मेरा नाम लेगा