“थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी...
मुनासिब होगा कि अब मेरा हिसाब कर दे...!!” Er kasz
“थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी...
मुनासिब होगा कि अब मेरा हिसाब कर दे...!!” Er kasz
सांसो के सिलसिले को ना दो जिंदगी का नाम
जीने के बावजूद भी मर जाते है कुछ लोग
मुझे गुमनाम आशिक कहने वालो ये मंजर भी देख लो
पूरा शहर आया है मेरे जनाजे में
मुझे मेरे कल कि फिक्र तो आज भी नही है
पर ख्वाहिश तुझे पाने कि कयामत तक रहेगी
मुझे तो होश नही तुमको खबर हो शायद
लोग कहते है कि तुम ने मुझको बर्बाद कर दिया.
उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
में यह नहीं कहता के मेरी खबर पुछो तुम
खुद किस हाल में हो इतना तो बता दिया करो
मार दो जान से बेशक पर ऐसी सजा ना दो
कि बैठो तुम हमारे सामने किसी अजनबी की तरह
सुना है कि मौत से पहले एक और मौत होती है
और उसे प्यार से लोग मोहब्बत कहते हैं
बहुत कुछ कहना है पर कहूँ भी तो किसे कहूँ
ख़ुद से ही इतना ख़फ़ा ख़फ़ा रहता हूँ आजकल
मत पूछ की मेँ शब्द कहां से ला रहा हूँ
तेरी यादो का खजाना हैँ लुटाए जा रहा हूँ
इतना मगरूर मत बन मुझे वक्त कहते हैं
मैंने कई बादशाहो को दरबान बनाया हैं
er kasz
एक वक्त था जब बातें ही खत्म नही होती थी
आज सब कुछ खत्म हो गया मगर बात नही होती
तुम रख ना सकोगे मेरा तौफ़ा संभालकर
वरना मैं अभी दे दूं जिस्म से रूह निकाल कर...
हर रात जान बूझकर रखता हूँ दरवाज़ा खुला...
शायद कोई लुटेरा मेरा गम भी लूट ले.... Er kasz