मत पूछ कैसे गुजरे दिन, कैसी बीती रातें
बहुत तनहा जिये हैं हम तुझसे बिछड़ने के बाद..

किसी टूटे हुए मकान की तरह हो गया है ये दिल...
कोई रहता भी नही और कमबख्त बिकता भी नही...!

कोशिश आखरी सांस तक करनी चाहिये
मंजिल मिले या तजुर्बा चीज़े दोनों ही नायाब है
Er kasz

बस इस एक पल की ख्वाईश में जिये जाते हैं हम
कि इसके बाद और कुछ नही चाहिये ज़िंदगी से

हमने खुशियोँ की तिजोरी उनके हवाले की थी,
लेकिन कमबख्त को मेरी हंसी ही चुरानी थी!!

जी भर कर जुल्म कर लो......
क्या पता मेरे जैसा कोई बेजुबान तुम्हें फिर मिले ना मिल*::*""!! Er kasz

दिल पे मेरे तू अगर दिल पे मेरे हाथ ही रख दे तो
टूटती साँस भी कुछ दर्र संभाल जाती है

सुना है आज उस की आँखों मे आसु आ गये
वो बच्चो को सिखा रही थी की मोहब्बत ऐसे लिखते है

मैं दुआ में उसे माँगता हूँ और वो किसी और को
कभी कभी सोचता हूँ भगवान किसकी सुनेगा ?

वो बेईमान नेता सी है हर दिल से खेलती है
मै भोली जनता सा हूँ हर बार उसी को चुनता हुँ

मालुम था कुछ नही होगा हासिल लेकिन
वो इश्क ही क्या जिसमें खुद को ना गवायाँ जाए
er kasz

तेरा नज़रिया मेरे नज़रिये से अलग था
शायद तुझे वक्त गुज़ारना था और मुझे जिन्दगी

एक तेरा ही नशा था जो शिकस्त दे गया मुझे
वरना मयखाने भी तौबा करते थे मेरी मयकशी से!..

ज़ालिम ने मेरा खत बड़ी बेदर्दी से फाड़ा
मेरे अल्फाज़ की हिचकियां मेरे घर तक आईं

न कहा करो हर बार की हम छोङ देंगे तुमको
कयोंकि न हम इतने आम हैं न ये तेरे बस की बात है