छेड़कर जमानेभर की लड़कियों को रोया वो रातभर
जिस रोज घर उसके बिटिया ने जन्म लिया

अपने हर एक लफ्ज़ का खुद आइना हो जाऊँगा
किसी को छोटा कहकर मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा
Er kasz

किसी रोज फुर्सत मिले तो आना हमारी महफ़िल में
हम शायरी नहीं दर्द ए इश्क़ सुनाते हैं

हाथ ज़ख़्मी हुए तो कुछ अपनी ही गलती थी...
लकीरों को मिटाना चाहा था किसी को पाने के लिए..

नाज है मुझे तेरी नफरतों का अकेला वारिस हूँ
मोहब्बत तो तुम्हे बहोत से लोगों से है

बहुत ज़ालिम हो तुम भी मुहब्बत ऐसे करते हो
जैसे घर के पिंजरे में परिंदा पाल रखा हो

मोहब्बत मे सर को झुका देना कोई मुश्किल नही
रोशन सूरज भी चाँद की खातिर डूब जाता है

मेरे इस छोटे से दिल में सिर्फ तुम्हीं रहती हो
इस दर्दभरी जुदाई को कैसे सह लेती हो

जिन्दगी में दो चीजें कभी मत कीजिए
झूठे आदमी के साथ प्रेम और सच्चे आदमी के साथ गेम

दफा हो जा ए महोब्बत मेरी ज़िंदगी से
हंसी हंसी में तूने तो मेरी हस्ती ही मिटा डाली

ये घड़ी-घड़ी कुरेद कर दिल दुखाती हो मेरा
एक बार जान लेके किस्सा ख़त्म क्यूँ नही करती

काश वो भी बेचैन होकर कह दे मेँ भी तन्हा हूँ
तेरे बिन तेरी तरह तेरी कसम तेरे लिए
Er kasz

बहुत भीड़ थी उस बुज़ुर्ग के जनाज़े में
कोई बड़ा पेड़ गिरने पर जैसे परिंदे निकल आते हैं

दीदार-ए-यार की खातिर जिन्दा हूँ ग़ालिब
वर्ना कौन जीता है इस दुनिया में तमाशा बन कर

बहुत अमीर होती है ये शराब की बोतलें
पैसा चाहे जो भी लग जाए सारे ग़म ख़रीद लेतीं है