सम्भाल के रखना अपनी पीठ को...
शाबाशी " और " खंजर "दोनों वहीं मिलते है ...Er kasz

खूबसूरत जिस्म हो या सौ टका ईमान
बेचने की ठान लो तो हर तरफ बाजार है
er kasz

देख ली समुंदर तुम्हारी भी दरियादिली
सांसे ले ली और लाश बाहर फेंक दी

पॉव सूखे हुए पत्तों पे अदब से रखना
धूप मे मॉगी थी तुमने पनाह इनसे कभी

इंसान जल्दी सो जाना चाहता है
मगर हालात उसे जागने पर मजबूर करते है
er kasz

बहुत थे मेरे भी इस दुनिया मेँ अपने
फिर हुआ इश्क और हम लावारिस हो गए
Er kasz

हो जाऊं तेरे इश्क़ में मशग़ूल इस क़दर
कि होश भी वापस आने की इज़ाज़त मांगे...!! Er kasz

कितने आसान से लफ़्ज़ों में कह गया वो..
के बस दिल ही तोडा है कोनसी जान ली है..

अजीब रंग मे गुजरी है जिन्दगी अपनी
दिलो पर राज किया और मोहब्बत को तरसे

लोग बुतों को पूजकर भी मासूम रहे
हमने इन्सान को चाहा, और गुनाहगार हो गए

चाहे तो दिल की किताब खोल भी देते हम,
मगर उस पढने वाले को फुरसत ही नही थी...!

में अक्सर अकेला रेह जाता हूँ
क्युकी में हमेश उनके सहारे रेहता हूँ
er kasz

बस एक ही सबक सीखा है ज़िन्दगी स

जितनी वफ़ा करोगे उतना परेशान रहोगे

दुकानें उसकी भी लुट जाती है,
जो दिन भर में न जाने कितने ताले बेच देता है !

ज़र्रा ज़र्रा जल जाने को हाज़िर हूँ,
बस शर्त है कि वो ...आँच तुम्हारी हो. Er kasz