दरवाज़े पे जब लिखा हमने नाम अपनी माँ का,
मुसीबत ने दरवाज़े पे आना छोड़ दिया..!!

ठान लिया था कि अब और नहीं लिखेंगे
पर उन्हें देखा और अल्फ़ाज़ बग़ावत कर बैठे
er kasz

ये बिखरे हुए हालात देख के लगता नहीं मेरे
के कितना ढूँढ़ा होगा तुझे जिन्दगी

13 साल का खेल 5 साल की जेल और 3 घंटे में बेल
कितने निराले हैं किस्मत और वक़्त के खेल

लफ़्ज़ अल्फ़ाज़ कागज़ और किताब
कहाँ कहाँ नहीं रखता तेरी यादों का हिसाब
er kasz

मोहब्बत की है "कोई कत्ल🔪 तो नहीँ"
क्युँ बार-बार कहते है लोग "जरा बचकर रहना" Er kasz

बख्शे हम भी न गए बख्शे तुम भी न जाओगे
वक्त जानता है हर चेहरे को बेनकाब करना
Er kasz

मजिंल पाना तो , बहुत दूर की बात है ..
गुरूर में रहोगे तो , रास्तें भी न देख पाओगे.......Er kasz

लफ्ज़ों में वो बात कहाँ जो मज़ा आँखों ही आँखों में बात करने का हैं
वो कमाल हैं

कितने भी अच्छे कर्म कर लो
मरने के बाद लोग उसी को याद रखेगें जो उधार ले कर मरा हो

लिपट जाती जरुर अगर ज़माने का डर ना होता |
बसा लेती मै तुमको अगर सीने में घर होता

बहुत रोई होगी वो खाली कागज देखकर
खत मे पूँछा था उसने जिंदगी कैसे बीत रही है
Er kasz

खुल जाता है उनकी यादो का बाजार हर शाम
फिर अपनी रात उसी रौनक मेँ गुजर जाती है
er kasz

आपकी सादगी पे क़त्ल-ऐ-आम हुवे जाते है
तब क्या क़यामत होगी जब आप सवंर कर आओगे
er kasz

" धडकनें इस दिल की कभी बंद
नहीं होगी...
बस तुम इस दिल से निकल कर
कहीं मत जाना." Er kasz