लाख समझाया उसको कि दुनिया शक करती है
मगर उसकी आदत नहीं गई मुस्कुरा कर गुजरने की
Er kasz
लाख समझाया उसको कि दुनिया शक करती है
मगर उसकी आदत नहीं गई मुस्कुरा कर गुजरने की
Er kasz
अधूरी हसरतों का आज भी इलज़ाम है तुम पर
अगर तुम चाहते तो ये मोहब्बत ख़त्म ना होती
Er kasz
मयखाने से पूछा आज इतना सन्नाटा क्यों है
बोला साहब लहू का दौर है शराब कौन पीता है
Er kasz
जब वो मुझसे नाराज होती थी तब
मुझे दुनिया की सबसे महँगी चीज उसकी मुस्कान लगती थी
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मेरी ज़िन्दग़ी के मालिक मेरे दिल पे हाथ रखना
तेरे आने की खुशी में मेरा दम निकल न जाए
बुलंदी की उड़ान पर हो तो जरा सब्र रखो
परिंदे बताते हैं आसमान में ठिकाने नहीं होते
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ठोकरें खाकर भी ना संभले तो मुसाफिर का नसीब
राह के पत्थर तो अपना फ़र्ज़ अदा करते हैं
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कोई टोपी तो कोई अपनी पगड़ी बेच देता है
मिले अगर भाव अच्छा जज भी कुर्सी बेच देता है
Er kasz
रात भर चलती रहती है उँगलियाँ मोबाइल पर
किताब सीने पे रखकर सोये हुए एक जमाना हो गया
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तेरी महफ़िल से उठे तो किसी को खबर तक ना थी
तेरा मुड़-मुड़कर देखना हमें बदनाम कर गया
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तवायफ फिर भी अच्छी के वो सीमित है कोठे तक
पुलिस वाला तो चौराहे पर वर्दी बेच देता है
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जला दी जाती है ससुराल में अक्सर वही बेटी
के जिस बेटी की खातिर बाप किडनी बेच देता है
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हाल तो पुछ लु तेरा पर डरता हुँ आवाज़ से तेरी
जब जब सुनी है कमबख़्त मोहब्बत ही हुई है
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अजीब मजाक करती हैं यह नौकरी काम मजदूरों वाले कराती हैं
और लोग साहब कहकर बुलाते हैं
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ये कलयुग है कोई भी चीज़ नामुमकिन नहीं इसमें
कली फल फूल पेड़ पौधे सब माली बेच देता है
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