कोई हमे भी सिखा दो ये लफ्जों से खेलना
दर्द हमारे पास भी बेहिसाब है

खफा नहीं हूँ तुझसे ए जिंदगी
बस जरा दिल लगा बैठा हूँ इन उदासियों से

पहले तो यूँ ही गुज़र जाती थी रात
मोहब्बत हुई तो रातों का अहसास हुआ

आँख चाहिए समझने के लिए
अकसर आपबीती होती है तमाम शायर के शायरी मेँ

गुनाह मुझे मेरे सामने गिनवा दो
बस जब कफ़न में छुप जाऊ तो बुरा न कहना

तेरे ही वफ़ा के सिलसिले बदल गए हैँ
मुझे तो आज भी तुमसे अज़ीज कोई नहीँ

लफ्जो में कुछ यू उलझा हु में
कहीं कंही से हर चेहरा तुम जैसा लगता है

मुमकिन न होगा यूँ
भूल जाना मुझको, तेरा गुनाह हूँ याद अक़्सर आऊंगा !!

तुझको भूलूँ कोशिश करके देखूंगा
वैसे दरिया उल्टा बहना मुश्किल है

तुझे जमाने का डर है मुझसे बात न कर
दिल में कोई और है तो मुझसे बात न कर

दिल से पूछो तो आज भी तुम मेरे ही हो
ये ओर बात है कि किस्मत दग़ा कर गयी

मेरे ही किनारे मुझमें डूब जाते हैं
जब दिलमें उठता है दर्द का तूफां

मेरी तङप तो कुछ भी नही है
सुना है उसके दिदार के लिए आईने तरसते है
Er kasz

हज़ारो है मेरे अल्फ़ाज़ के दीवाने
मेरी ख़ामोशी सुनने वाला भी तो कोई हो

तुम्हारे बाद जो होगी वो दिल्लगी होगी
महोबत तो तुम पे ख़तम कर बेठे है