मंजिल का नाराज होना भी जायज था
हम भी तो अजनबी राहों से दिल लगा बैठे थे

अब तो बहुत कम है दर्द मेरे दिल का
सुना है किसी से पूछा था उसने हाल मेरा

मेरे अपने कहीं कम न हो जाएँ
इस डरसे मुसीबत में किसी को आजमाता नहीं
Er kasz

बहुत थे मेरे भी इस दुनिया मेँ अपने
फिर हुआ इश्कऔर हम लावारिस हो गए
Er kasz

मुझे सिर्फ तू पसंद है, ना कोई और.! ना कोई और तेरे जैसा, ना कोई और तेरे अलावा.!

बेवफाई के सितम तुमको भी समझ आ जाते
काश होता अगर तुम जैसा तुम्हारा कोई

जख्मो को हरा रखना अच्छा लगता है
यही तो सबूत बाकि हैं तेरी मुहोब्बत के

क़त्ल आँखों से कीजिए तलवार से नहीं
मुहब्बत हमसे की है तो यू तडपाओ नहीं

तेरी तस्वीर को सीने से लगा रखा है
मैंने दुनियां से अलग गाँव बसा रखा है

चल ऐ दिल किसी अनजान सी बस्ती में
इस शहर में तुझसे सभी नाराज ही रहते हैं

अनकही बातों के ढेर लग जाते है दिल में
रोज मिलकर भी उनसे कुछ कह नही पाते

में अक्सर अकेला रेह जाता हूँ
क्युकी में हमेश उनके सहारे रेहता हूँ
er kasz

आज कुछ नही है मेरे पास लिखने के लिए
शायद मेरे हर लफ्ज़ ने खुद-खुशी कर ली

मै ये नही कहता की मेरी खबर पूछो तुम
खुद किस हाल में हो ये तो बता दिया करो

लिख दे मेरा अगला जनम उसके नाम पे ए खुदा
इस जनम में ईश्क थोडा कम पड गया है