बस इक झिजक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में
कि तेरा ज़िक्र भी आएगा इस फ़साने में
बस इक झिजक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में
कि तेरा ज़िक्र भी आएगा इस फ़साने में
तुझे देखकर ही शुरू होती है मेरी हर सुबह
फिर कैसे कह दूँ के मेरे दिन खराब है
कहाँ कोई यहाँ आता है कुछ करने के लिए
एक उम्र ज़िंदा रहना पड़ता है मरने के लिए
सारे खयाल दिल के वो अपने साथ ही ले गयी
अपना खयाल रखना जाते जाते यह भी कह गयी
काश कि ये इश्क भी चुनावों की तरह होता
हारने के बाद दिल खोल कर बहस तो कर लेते
लगाई तो थी आग उनकी तस्वीर में रात को
सुबह देखा तो मेरा दिल छालो से भर गया
er kasz
ये सोच कर तेरी महफ़िल में चला आया हूँ
तेरी सोहबत में रहूँगा तो संवर जाऊंगा
खुद मुशकुराती हो और हमको रुलाती हो
क्यों निगाहे मिलकर, इस दिल को तडपाती हो
क्या लिखूँ दिल की हकीकत आरज़ू बेहोश है
ख़त पर हैं आँसू गिरे और कलम खामोश है
हकिकत से बहोत दूर है ख्वाहिश मेरी
फिर भी एक ख्वाहिश है कि एक ख्वाब हकिकत हो
मगरूर हमें कहती है तो कहती रहे दुनिया
हम मुड़ कर पीछे किसी को देखा नहीं करते
अरे तुम भी निकले हो वफ़ा की तलाश में
यकीन मानो नही मिलती नही मिलती नही मिलती
मेरी बर्बादिओं में कुछ तेरा भी हाथ था ....... क्या इस बात का अब तुझसे शिकवा भी न करू ??
“थक गया हूँ तेरी नौकरी से ऐ जिन्दगी...
मुनासिब होगा कि अब मेरा हिसाब कर दे...!!” Er kasz
टूट सा गया है मेरी चाहतो का वजूद,
अब कोई अच्छा भी लगे तो हम इजहार नही करते
Er kasz