शायरों ने इसे लफ़्ज़ों से सजा रखा है
वरना मोहोब्बत इतनी भी हसीन नहीं होती
शायरों ने इसे लफ़्ज़ों से सजा रखा है
वरना मोहोब्बत इतनी भी हसीन नहीं होती
नब्ज देखी हकीम ने कहा इसे इश्क की बीमारी है
दिल निकाल दो कमबख़्त बच जाएगा
अच्छा छोड़ो ये बहस और तक़रार की बातें
ये बताओ रात ख़्वाबों में क्यूँ आते हो
काश मै लौट पाऊँ बचपन कि उन गलियों में
जन्हा ना कोई ज़रूरी था ना कोई जरूरत
सस्ता न समझ ये इश्क़ का सौदा पगली
तेरी हँसी के बदले पूरी जिंदगी दे रहा हूँ
हम जा रहे हैं वहाँ जहाँ दिल की हो कदर
तुम बैठे रहना अपनी अदायेँ सम्भाल कर
मुददतों से तू पी रहा है यह ज़हर दर्द का
मौत तुझे ऐ दिल फिरभी क्योँ नहीं आती
लगाकर आग़ सीने में कहाँ चले हो तुम हमदम
अभी तो राख़ उडने दो तमाशा और भी होगा
मत पूँछ मेरे जागने की वजह
ऐ-चाँद तेरा ही हम शकल है वो जो मुझे सोने नही देता
मैंने जान बचा के रखी है एक जान के लिए
इतना इश्क कैसे हो गया एक अनजान के लिए
खो गई है मंजिलें मिट गए हैं रस्ते
गर्दिशें ही गर्दिशें अब है मेरे वास्ते
इसी बात ने उसे शक मेँ डाल दिया हो शायद
इतनी मोहब्बत उफ्फ कोई मतलबी ही होगा
तमाम उम्र इसी बात का गुरुर रहा मुझे
किसी ने मुझसे कहा था की हम तुम्हारे है
तुम किसी और से मालूम तो करके देखो
हम किसी ओर के कितने है और तुम्हारे कितने
वो मिल जाए मुझे तो यू समझूंगा
के जन्नत का एलान हो गया किसी गुनाहगार के लिए