राह पे चलते-चलते पूछा पावो के छालो ने
बस्ती कितनी दूर बनाई है दिल में बसने वालो ने

मेरी लिखी किताब मेरे ही हाथो मे देकर वो कहने लगी
इसे पढा करो मोहब्बत सीख जाओगे
er kasz

फैसले से पहेले कैसे मान लूं हार क्योंकी
वक्त अभी जीता नहीँ और मैं अभी हारा नही
er kasz

जिन्दगी की उलझनों ने कम कर दी हमारी शरारते
और लोग समझते हैं कि हम समझदार हो गये
er kasz

फिर वही दिल की गुज़ारिश फिर वही उनका ग़ुरूर
फिर वही उनकी शरारत फिर वही मेरा कुसूर

शायरी से ज्यादा प्यार मुझे कहीं नहीं मिला
ये सिर्फ वही बोलती है जो मेरा दिल कहता ह

तुम्हारे कानों की बाली और माथे की बिंदिया
जबसे बसी हैं दिल म उड़ गई है मेरी निंदिया

भुला दूंगा तुझे ज़रा सब्र तो कर
तेरी तरह मतलबी बनने में थोड़ा वक़्त तो लगेगा ही। Er kasz

सफर में मुश्किलें आऐ तो हिम्मत और बढ़ती है
ना बिकने का इरादा हो तो कीमत और बढ़ती है

मिलने को यूँ तो हमसे मिले है हजारो
वो शख्स जो सीधा दिल में उतर गया उसका हुनर कमाल था

तेरी चाहत का ऐसा नशा चढ़ा है की
शायरी हम लिखते है और दर्द पुरी की पूरी महफिल सहती है

मिला क्या हमें सारी उम्र मोहब्बत करके,..
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बस एक शायरी का हुनर, एक रातों का जागना.. Er kasz

तु मिले या न मिले, ये मेरे मुकद्रर की बात है ,
बहुत सुकून मिलता है, तुम्हें अपना सोचकर !

इक आग का दरिया हैं मोजों की रवानी हैं
ज़िंदगी और कुछ भी नहीं.. तेरी मेरी कहानी हैं
er kasz

खुबसूरत तालमेल है मेरे और उपर वाले के बीच में
ज्यादा मै मांगता नही और कम वो देता नही