अब की बार एक अजीब सी ख्वाहिश जगी है.....
कोई मुझे टूट कर चाहे और मै बेवफा निकलू...

ऐसा नहीं की अब तेरी जरूरत नहीं रही,
बस टूट के बिखरने की अब हिम्मत नहीं रही…

बिना मेरे रह ही जायेगी कोई ना कोई कमी.
तूम जिंदगी को चाहे कितना भी संवार लो..

मैं क्यूँ कुछ सोच कर दिल छोटा करूँ.
वो उतनी ही कर सकी वफ़ा जितनी उसकी औकात थी.

पूँछा जो मैंने उससे मुझको भुला दिया कैसे
चुटकी बजा के वो बोला- ऐसे ऐसे ऐसे...

इसे इत्तेफाक समझो या दर्दनाक हकीकत,
आँख जब भी नम हुई वजह कोई अपना ही निकला !!

आखोँ में तेरे सपने होठों पे तेरी बात
ऐ दिन तो कट जाता है गुजरती नहीं रात✍ Er kasz

अमीर होता तो बाज़ार से खरीद लाता नकली
गरीब हूँ इसलीये दिल असली दे रहा हु
Er kasz

कुछ इस अदा से तोड़े है ताल्लुक़ात उसने
की मुद्दत से ढूंढ़ रहा हु कसूर अपना
er kasz

मेरे सब्र का इंतेहा क्या पूछते हो.
वो मुझ से लिपट कर रोई भी तो किसी और के लिए.

मेरा टूटना बिखरना एक इत्तेफाक नहीं
बहुत मेहनत की है एक शक्स ने इसकी खातिर

रात गुज़री है तेरी यादों के साये में..
सुबह से तेरे ख़्वाबों में उलझा हूँ..!! Er kasz

किस कदर दर्द सेहता होगा वो सख्स
जिसे अहसास हो अब ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं रही

तुम्हें देखकर किसी को भी यकीन नही
कि मेरे दिल का ये हाल तुमने ही किया है
er kasz

एहसास ए मुहब्बत के लिए बस इतना ही काफी है
तेरे बगैर भी हम तेरे ही रहते है
Er kasz