मेरे दिल के अहसासो को समझा न कोई ...हर एक ने मेरे दर्द का तमाशा बना दिया...Er kasz

खुद ही मुस्कुरा रहे हो साहिब
पागल हो या मोहब्बत की शुरूआत हुई है
er kasz

सम्भाल के रखना अपनी पीठ को...
शाबाशी " और " खंजर "दोनों वहीं मिलते है ...Er kasz

बस एक ही सबक सीखा है ज़िन्दगी से
जितनी वफ़ा करोगे उतना परेशान रहोगे

बुरे हैं ह़म तभी तो ज़ी रहे हैं
अच्छे होते तो द़ुनिया ज़ीने नही देती

लालियाँ गालों पर जब हमको नजर आती है
चलते चलते पे ये निगाह ठहर जाती है

कितनी मासूम होती हे ये दिल की धड़कने

कोई सुने ना सुने खामोश नही होती

दिल तो करता है चिर के रख दू ऐ दिल तुझे
ना तू रहे मुझ में ना वो रहे तुझ में

मेरे अपने कहीं कम न हो जाएँ
इस डरसे मुसीबत में किसी को आजमाता नहीं
Er kasz

हो जाऊं तेरे इश्क़ में मशग़ूल इस क़दर
कि होश भी वापस आने की इज़ाज़त मांगे...!! Er kasz

कितने आसान से लफ़्ज़ों में कह गया वो..
के बस दिल ही तोडा है कोनसी जान ली है..

हाए कैसा है बे दस्तूर तेरी महफिल का
पहुंच न पाता है पैगाम हमारे दिल का

तुम्हारे पास ही होगा जरा फिर से ढुंढो
मेरे सीने से दिल आखिर गया कहा
=RPS

में अक्सर अकेला रेह जाता हूँ
क्युकी में हमेश उनके सहारे रेहता हूँ
er kasz

लगता है खुदा का बुलावा आने वाला है
आज कल मेरी झूठी कसम खा रही है वो पगली