किस कदर दर्द सेहता होगा वो सख्स
जिसे अहसास हो अब ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं रही

कितनी मासूम होती है ये दिल की धड़कनें..!
कोई सुने ना सुने ये खामोश नही रहती..!!"

देखना यारों पड़ोस वाली भाभी छुप न जाये
चलो पकड़ के उन्हें भी रंग गुलाल लगाये

ख़ता ये नहीं कि उसने भूला क्यों दिया
सवाल ये है कि वो मुझे अब याद क्यों है
Er kasz

लगाई तो थी आग उनकी तस्वीर में रात को
सुबह देखा तो मेरा दिल छालो से भर गया
er kasz

किसी पे मर जाने से शुरू होती है महोब्बत
ऐ दोस्त इश्क जिन्दा लोगो का काम नही

सुन कर ग़ज़ल मेरी वो अंदाज़ बदल कर बोले
कोई छीनो कलम इससे ये तो जान ले रहा है
er kasz

चंद दिनों मैं भी रख दूँ भरम खुदा का
झूठ ही कह दो कि तुम्हें मुझसे मुहब्बत है

टूट सा गया है मेरी चाहतो का वजूद,
अब कोई अच्छा भी लगे तो हम इजहार नही करते
Er kasz

सांसो के सिलसिले को ना दो जिंदगी का नाम
जीने के बावजूद भी मर जाते है कुछ लोग

बहुत दिनों से हु अकेला, जीना दुश्वार है
आजा मेरे मितवा, बस तेरा ही इंतजार है

ज़िन्दगी तो हमारी भी शानदार कट रही थी,
मगर बीच में ही घरवालों ने सगाई करवा दी.

आज किसी ने ये बात कह के दिल तोड दिया
की लोग तेरे नहीं तेरी शायरी के दीवाने है

इतना मगरूर मत बन मुझे वक्त कहते हैं
मैंने कई बादशाहो को दरबान बनाया हैं
er kasz

हर रात जान बूझकर रखता हूँ दरवाज़ा खुला...
शायद कोई लुटेरा मेरा गम भी लूट ले.... Er kasz