कल घर से निकले थे, माँ के हाथो के बने पराठे खा कर...
आज सड़क किनारे चाय तलाश रही है जिंदगी...!! Er kasz
कल घर से निकले थे, माँ के हाथो के बने पराठे खा कर...
आज सड़क किनारे चाय तलाश रही है जिंदगी...!! Er kasz
क्या मिलना ऐसे लोगो से जिनकी फितरत छुपी रहे
नकली चेहरा सामने आये और असली सूरत छुपी रहे
सस्ता सा कोई इलाज़ बता दो इस मुहोब्बत का
एक गरीब इश्क़ कर बैठा है इस महंगाई के दौर मैं
er kasz
मत पुछ शीशे से उसके टुट्ने की वजह.
क्योंकि उसने भी मेरी तरह किसी पत्थर को अपना समझा होगा!
उनके पास शिकायत लेकर गए थे उनके दिए हुए दर्द की
अपने सारे दर्द भूल गए जब उनको खुश देखा तो.
चूम लेती है लटक कर कभी चेहरा तो कभी लब..!
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तुमने अपनी जुल्फों को बहोत सिर पे चढ़ा रखा हे !Er kasz
लफ़्जो को पिरोने का हुनर सिखा तुम्ही से हमने
हर लफ्ज हम अब सिर्फ तेरे लिए ही लिखते हैं
er kasz
सुकून ऐ दिल के लिए कभी हाल तो पूँछ ही लिया करो, मालूम तो हमें भी है कि हम आपके कुछ नहीं लगते...! Er kasz
तू अगर चला गया छोड़कर मुझे अकेला
तो ले जाना उन पलों को भी जो तेरे बिना मेरी जान ले लेगें
er kasz
वो हमेशा कहते थे हमसे तुम्हे अपना बना के छोड़ेगे
कितना सही था अपना भी बनाया और छोड भी दिया
वो काग़ज़ आज भी फूलों की तरह महकता है
जिस पर उसने मज़ाक़ से लिखा था मुझे तुमसे मोहब्बत है
मेरे सारे जज्बात बस शायरी में सिमट के रह गए,
तुझे मालूम ही नही हम तुझसे क्या क्या कह गए.
er kasz!
☄एक बार भूल से ही कहा होता कि हम किसी और के
भी है
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खुदा कसम हम तेरे साये से भी दूर रहते.. ☄ Er kasz
याद आयेगी मेरी तो बीते कल को पलट लेना
यूँ ही किसी पन्ने में मुस्कुराता हुआ मिल जाऊंगा
Er kasz
दोस्तों का क्या है वो तो यों ही बन जाते है मुफ़्त में,
आओ चलो आज सच बोलकर कुछ दुश्मन बनाये ।Er kasz