इतना मगरूर मत बन मुझे वक्त कहते हैं
मैंने कई बादशाहो को दरबान बनाया हैं
इतना मगरूर मत बन मुझे वक्त कहते हैं
मैंने कई बादशाहो को दरबान बनाया हैं
दूर गगन में उड़कर भी..लौट आते हैं..!
परिंदे इन्सान की तरह बेपरवाह नही होते...
कहानी खत्म हो तो कुछ ऐसे खत्म हो
कि लोग रोने लगे तालियाँ बजाते बजाते
ख्वाब आँखों से गये नींद रातों से गयी
तुम गये तो लगा जिन्दगी हाथों से गयी
“नसीब का लिखा तो मील ही जायेगा,
या रब,
देना हे तो वो दे जो तकदीर मे ना हो”..!!!
न चाहते हुए भी उसे छोड़कर आना पड़ा
वो इम्तिहान में ना आने वाले सवाल जैसा था
अब और नही होती इश्क की गुलामी यारो
अब कह दो उससे हो जाये जिसका होना चाहेँ
इक्का चाहे कितना भी बडा क्यु ना हो
मगर रानी तो सिर्फ बादशाह की ही होती हे
कितनी अजीब है मेरे अन्दर की तन्हाई भी
हजारो अपने है मगर याद तुम ही आते हो
मुझसे अगर पूछना है तो मेरे जज्बात पूछ,
जात और औकात तो सारी दुनिया को पता ह
"ऐसा कोई शहर नही जहा हमारा कहर नहीँ..,
ऐसी कोई
गली नही जहा हमारी चली नहीं.."
हवा से कह दो कि खुद को आजमा के दिखाये बहुत
चिराग बुझाती है एक जला के दिखाये
मुसीबतो से उभरती है शख्सियत यारो,
जो चट्टानों से न उलझे वो झरना किस काम का..
कभी भी ख़ुशी मे शायरी नहीं लिखी जाती है
ये वो धुन है जो दिल टूटने पर बनती है
कभी भी ख़ुशी मे शायरी नहीं लिखी जाती है
ये वो धुन है जो दिल टूटने पर बनती है