कपड़ों को समेटे हुए उठी है मगर; डरती है कहीं उन को ना हो जाए खबर; थक कर अभी सोए हैं कहीं जाग ना जाएँ; धीरे से ओड़ा रही है उनको चादर। शुभरात्रि!
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कपड़ों को समेटे हुए उठी है मगर; डरती है कहीं उन को ना हो जाए खबर; थक कर अभी सोए हैं कहीं जाग ना जाएँ; धीरे से ओड़ा रही है उनको चादर। शुभरात्रि!
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