जब भी चाँद पर काली घटा छा जाती है; चाँदनी भी यह देख फिर शर्मा जाती है; लाख छिपाएं हम दुनिया से यह मगर; जब भी होते हैं अकेले तेरी याद आ जाती है। शुभ रात्रि!
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जब भी चाँद पर काली घटा छा जाती है; चाँदनी भी यह देख फिर शर्मा जाती है; लाख छिपाएं हम दुनिया से यह मगर; जब भी होते हैं अकेले तेरी याद आ जाती है। शुभ रात्रि!
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