जिनके राहों में हमने बिछाये थे सितारे; उनसे कहते हैं हरपाल आंसुओं के सहारे; हो गए हैं सारे शिकवे कितने किनारे; मगर फिर भी क्यों वो हुए ना हमारे!
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जिनके राहों में हमने बिछाये थे सितारे; उनसे कहते हैं हरपाल आंसुओं के सहारे; हो गए हैं सारे शिकवे कितने किनारे; मगर फिर भी क्यों वो हुए ना हमारे!
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