दर्द जब हद से गुजर जाता हूँ तो रो लेता हूँ; जब किसी से कुछ कह नहीं पता तो रो लेता हूँ; यूँ तो मेला हैं चारों तरफ हमारे लोगों का मगर; जब कोई अपना नजर नहीं आता तो रो लेता हूँ।
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दर्द जब हद से गुजर जाता हूँ तो रो लेता हूँ; जब किसी से कुछ कह नहीं पता तो रो लेता हूँ; यूँ तो मेला हैं चारों तरफ हमारे लोगों का मगर; जब कोई अपना नजर नहीं आता तो रो लेता हूँ।
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