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Bewafa Shayari
चुप चाप चल रहे थे अपनी
चुप चाप चल रहे थे अपनी
चुप चाप चल रहे थे अपनी मंज़िल की और
फिर ठेके पर नज़र पड़ी और गुमराह से हो गये हम
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जब प्यार और नफरत दोनों ही
सूरज आग उगलता है सहना धरती
"सिर्फ एक ही बात सीखी इन
हम मौत को भी जीना शिखा
ख्वाइशों से भरा पड़ा है घर
लिखा था राशि में आज खजाना
तुम्हारे बाद मैं जिस का हो
घर के बाहर भले ही दिमाग
प्यार तो जिन्दगी को सजाने के
काश खुदा कभी ऐसा करे की
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