उमीदों को तू न तोडना न हौंसले तू अब छोड़ना; जब हो राह कठिन और रात घनी; चाहे जो हो तो न रुकना मंज़िल से तुम मुंह न मोड़ना।
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उमीदों को तू न तोडना न हौंसले तू अब छोड़ना; जब हो राह कठिन और रात घनी; चाहे जो हो तो न रुकना मंज़िल से तुम मुंह न मोड़ना।
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