कुछ उजाले की चकाचौंध से डरते हैं कुछ अँधेरे में परछायिओं से डरते हैं
हम भी हैं तनहा अपनी रहबर निहारते पर जाने क्यूँ आपकी अंगडायिओं से डरते हैं
कुछ को ख्वाब देख के जीने की आदत है कुछ को मैखाने में पीने की आदत है
हम हैं परेशां दीवानापन की आदतों से पर जाने क्यों शादी की शहनाईयों से डरते हैं
इंतजार कर रहा हूँ जुश्तजू जो है इज़हार भले ही न करूँ आरज़ू तो है
कुछ मोहबत में किस्से सुने हैं ऐसे हम अभी से आपकी तनहायिओ से डरते हैं

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