अब मगर कुछ भी नहीं कुछ भी नहीं हो सकता; अपने जज़्बों से यह रंगीन शरारत न करो; कितनी मासूम हो नाज़ुक हो हमाक़त न करो; बार बार हाँ तुम से कहा था कि मोहब्बत न करो।
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अब मगर कुछ भी नहीं कुछ भी नहीं हो सकता; अपने जज़्बों से यह रंगीन शरारत न करो; कितनी मासूम हो नाज़ुक हो हमाक़त न करो; बार बार हाँ तुम से कहा था कि मोहब्बत न करो।
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