ज़ज: ना जाने क्यों मुझे तुम्हारी शक्ल जानी पहचानी सी लग रही है? मुजरिम: हुज़ूर मैं मुन्नी बाई के कोठे पर तबला बजाता हूँ।
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ज़ज: ना जाने क्यों मुझे तुम्हारी शक्ल जानी पहचानी सी लग रही है? मुजरिम: हुज़ूर मैं मुन्नी बाई के कोठे पर तबला बजाता हूँ।
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