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मालूम नहीं क्यूँ मगर कभीकभीअल्फाजों से
मालूम नहीं क्यूँ मगर कभीकभीअल्फाजों से
मालूम नहीं क्यूँ मगर कभी-कभी
अल्फाजों से ज्यादा मुझे तेरा नाम लिखना अच्छा लगता है
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गुजर गया वो वक़्त जब तेरी
शेरों को कहना नया शिकारी आया
घटा में छुपके सितारे फ़ना नहीं
लिखा था राशि में आज खजाना
सीने पे तीर खाके भी अगर
बहुत रोये थे हम उस दिन
कल का दिन किसने देखा है
न जाने कहाँ गुज़रता है अब
तेरी नाराजगी वाजिब है दोस्तमैं भी
पलकों में आँसु और दिल में
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