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कितने झूठे हो गये है हमबच्चपन
कितने झूठे हो गये है हमबच्चपन
कितने झूठे हो गये है हम
बच्चपन में अपनों से भी रोज रुठते थे
आज दुश्मनों से भी मुस्करा के मिलते है
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वो पगली आज बरसो बाद मिली
" जो तेरी चाह में गुज़री
प्यार करने वालो की किस्मत ख़राब
ज़िन्दगी से बस यही गिला है;
वो बड़े ताज्जुब से पूछ बैठा
तु होगी चाँद का टुकडा पर
ज़िन्दगी अगर सफ़र है तोक्या काम
तुम्हे ये पहेली बारीश मुबारकहम तो
अगर प्यार करती हो तो आ
मैं तो गजल सुना के तन्हा
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