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मजबूरियाँ ओढ़ के निकलते है घर
मजबूरियाँ ओढ़ के निकलते है घर
मजबूरियाँ ओढ़ के निकलते है घर से
वरना शौक़ तो अब भी है बारिशों में भीगने का
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हम मतलबी नहीं कि चाहने वाले
मुझे इस बात का ग़म नहीं
हमेशा अपनी छोटी सी गलतीयो से
टूटे हुए दिल ने भी उसके
सिर्फ इशारों में होती महोब्बत अगरइन
ज़िन्दगी में जब आये खुशियाँ तो
शौक था अपनाअपनाकिसी ने इश्क कियातो
भरी बरसात में उड़ के दिखा
तेरी तलाश में निकलू भी तो
उठाकर फूल की पत्ती उसने बङी
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