अब कहाँ रस्म... अब कहाँ रस्म घर लुटाने की; बरकतें थी शराब ख़ाने की; कौन है जिससे गुफ़्तुगु कीजे; जान देने की दिल लगाने की; बात छेड़ी तो उठ गई महफ़िल; उनसे जो बात थी बताने की; साज़ उठाया तो थम गया ग़म-ए-दिल; रह गई आरज़ू सुनाने की; चाँद फिर आज भी नहीं निकला; कितनी हसरत थी उनके आने की।

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