अब के हम बिछड़े... अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें; जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें; ढूंढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती; ये खजाने तुझे मुमकिन है खराबों में मिलें; तू खुदा है न मेरा इश्क़ फरिश्तों जैसा; दोनों इन्साँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें ; आज हम दार पे खैंचे गए जिन बातों पर; क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें; अब न वो मैं हूँ न तू है न वो माजी है फ़राज़ ; जैसे दो शख्स तमन्ना के सराबों में मिलें।

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