इश्क़ की दुनिया में इक हंगामा बरपा कर दिया; ऐ ख़याल-ए-दोस्त ये क्या हो गया क्या कर दिया; ज़र्रे ज़र्रे ने मेरा अफ़्साना सुन कर दाद दी; मैंने वहशत में जहाँ को तेरा शैदा कर दिया; तूर पर राह-ए-वफ़ा में बो दिए काँटे कलीम; इश्क़ की वुसअत को मस्दूद-ए-तक़ाज़ा कर दिया; बिस्तर-ए-मशरिक़ से सूरज ने उठाया अपना सर; किस ने ये महफ़िल में ज़िक्र-ए-हुस्न-ए-यक्ता कर दिया; मुद्दा-ए-दिल कहूँ एहसान किस उम्मीद पर; वो जो चाहेंगे करेंगे और जो चाहा कर दिया।

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