उन्हें सवाल ही लगता है... उन्हें सवाल ही लगता है मेरा रोना भी; अजब सज़ा है जहाँ में ग़रीब होना भी; ये रात भी है ओढ़ना-बिछौना भी; इस एक रात में है जागना भी सोना भी; अजीब शहर है कि घर भी रास्तों की तरह; कैसा नसीब है रातों को छुप के रोना भी; खुले में सोएँगे मोतिया के फूलों से; सजा लो ज़ुल्फ़ बसा लो ज़रा बिछौना भी; अज़ीज़ कैसी यह सौदागरों की बस्ती है; गराँ है दिल से यहाँ काठ का खिलौना भी।

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